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ओस की बूंद फोटू

ओस की बूंद फोटू 


ओस की बूंद 
जब पतों से सरक जाती वो 
मेरे मन को हीरे के भांती 
चमका जाती वो 


एक अहशास जगती वो 
दिल की आश बदती वो 
पहडूं की याद दिलाती वो 
तन को मेरे मचलती  वो 

ओस की बूंद 
जब पतों से सरक जाती वो 
मेरे मन को हीरे के भांती 
चमका जाती वो 

बर्फा की औढे चोटी वो 
यांदें है ओ मोटी मोटी वो 
घर बार छुड कर आयी वो 
बीते पालूँ को पल्कूं मै सजाई वो 

ओस की बूंद 
जब पतों से सरक जाती वो 
मेरे मन को हीरे के भांती 
चमका जाती वो 

अब मेरे आँखों से बहती वो 
झरनों का रूप लेकर आती वो
मेरी डंडी कांटी मेरे गावं 
उत्तरखंड घूम देती वो  

ओस की बूंद 
जब पतों से सरक जाती वो 
मेरे मन को हीरे के भांती 
चमका जाती वो 

अब इतना सताती वो 
माँ बुबा दीदी भूली
संगनी और बचों की खुद मा
अंशूं मै भीगा जाती वो 

ओस की बूंद 
जब पतों से सरक जाती वो 
मेरे मन को हीरे के भांती 
चमका जाती वो 

परया मुल्क की पीड़ा मा वो
पीड़ा और बढाती वो
रहन है मुश्कील तेरे बीना मेरे मुल्क
मुझ को समझा जाती वो 

ओस की बूंद
जब पतों से सरक जाती वो 
मेरे मन को हीरे के भांती 
चमका जाती वो 

बालकृष्ण डी  ध्यानी  


कवी बालकृष्ण डी ध्यानी
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