मै आम हों
मै आम था आम रहा
खास मै ना बन सखा
अपनी वेदना विलाप
नयनों से ना बहा सखा
काम वसाना माया
को ना त्याग सखा
मार्ग केंअवसर को
कभी ना ताड़ सखा
मै आम था आम रहा
मील के पत्थर की तरह
एक ही जगह आड़ रह
आये गाये कीतने कारवां
मै वही का वही पड़ रह
मै आम था आम रहा
सब कुछ मूक आँखों
चुप चाप निहरता रहा
अपने ही हाथों से मै
विचारूं बंद करता रह
मै आम था आम रहा
भीड़ मै अकेला होने
का गर्व दंभ भरता रहा
दोसरों पर उछाले कसीन्दो पर
यूँ ही मै हंसता रहा
मै आम था आम रहा
आपने इस बरताव से
मै हरदम यूँ ही पीसता रहा
रोज रोज मै चूल्हों भर
पानी मै यूँ ही मरता रहा
मै आम था आम रहा
मै आम था आम रहा
खास मै ना बन सखा
अपनी वेदना विलाप
नयनों से ना बहा सखा
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
कवी बालकृष्ण डी ध्यानी
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