मेरी व्यथा
आज रूठी होई हो
खुद से खींजी होई हो
अपने अंतर मन से ही
आज तुम भीडी होयी हो
आज रूठी होई हो .........
जीवन पथ मई आये
रोडै से अड़ी होयी हो
देखे होये सपनों के
को टूटने से उखड़ी होई हो
आज रूठी होई हो .........
बैचनी बढती जा रही है
कठनईयां घिरती जा रही है
असमान के काले काले बादल
छठ नहीं रहे व्याकुल हो तुम
खुद ही खुद मै घुली जा रही हो
आज रूठी होई हो .......
बहती नदी के बहवा से
कंही कटी जा रही हो तुम
सूरज की रोशनी की तरह
बादोलों की आड़ मै छुपी जा रही हो तुम
आज रूठी होई हो .........
पर्वतो की उंचाइयां
की चाह नै तुम
जंगलों मै खोयी जा रही हो तुम
चाँद की चांदनी की तरह
खुदा से शिकयत कीये जा रही हो तुम
आज रूठी होई हो .........
आज रूठी होई हो
खुद से खींजी होई हो
अपने अंतर मन से ही
आज तुम भीडी होयी हो
आज रूठी होई हो .........
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
कवी बालकृष्ण डी ध्यानी
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