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उनकी याद



उनकी याद 

उनकी याद आती रही 
हमको सताती रही 
पलकें भीगोती रही 
सिसकीयाँ रुक रुक कर 
उनके होने का आहसास दिलाती रही 
उनकी याद आती रही ..............................

नीगोडी आंखें उनकी 
लकीरें खींचती रही 
अंतर पटल पर उनकी 
आकृती उभरती रही 
उनकी याद आती रही ..............................

पलंग पर उभरे होये 
सील्वाटों के कोने पर 
तन को मेरे ओ बैरन 
इस तरह झिंझोड़ती रही 
उनकी याद आती रही ..............................

घर के कोठे पर कभी 
खुद का श्रींगार करते कभी 
निवाला की कोर मुंह डालते होये कभी 
कभी चुलह जलते होये 
उनकी याद आती रही ..............................

सांसों की आवन जवान की तरह 
मेरे मन मै हरदम छाये रही 
चमेली बेल बनकर मुझ पर लपेटी रही 
पल पल उनकी याद रही आती 
याद रही आती याद रही आती याद रही आती 

उनकी याद आती रही 
हमको सताती रही 
पलकें भीगोती रही 
सिसकीयाँ रुक रुक कर 
उनके होने का आहसास दिलाती रही 
उनकी याद आती रही ..............................

बालकृष्ण डी ध्यानी 
देवभूमि बद्री-केदारनाथ 
मेरा ब्लोग्स 
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत

कवी बालकृष्ण डी ध्यानी 
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