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एक लकीर


एक लकीर 

एक लकीर खिंच दे
इस दिल पर 
इसके दो टुकडे कर दे 
एक मै जुदाई 
दुजे मै मिलन 
इसके हिस्से भर दे 
एक लकीर खिंच दे................

दो आँखों का देखना 
दो हातों का मिलना 
दो लबों का मुश्कराना 
दो कानो का सुनना 
एक लकीर खींच दे 
इस तन पर 
इसके दो टुकडे कर दे 
एक मै खुशी और 
दुजे मै गम भर दे 
एक लकीर खिंच दे................

बहार का हसना 
पतझड़ का रोना 
कलियों का खिलना 
पल बाद मुरझ जाना
नदीयों का बहाना 
बहकर सागर से मिलना 
एल लकीर खींच दे 
इस प्रक्रती पर 
इसके दो टुकडे कर दो 
एक मै रूप 
दुजे मै रंग भर दो 
एक लकीर खिंच दे................

चाह की चाहत पर 
दिल बेकरार है 
हम ये कैसे कहदे 
हमे आप से प्यार है 
एल लकीर खिंच दे 
इस मोहबत पर
इसके दो टुकडे करदे
एक मै वफ़ा और 
दुजे मै बैवाफाई भर दे 
एक लकीर खिंच दे................

नन्हा सा बचपन 
और वो लड़कपन 
जवानी की दहलीज़ और
बुडपे की तकलीफ पर
एक लकीर खींच दे 
इस जीवन पर और 
दुजे मै मरण भर दे 
एक लकीर खिंच दे................

एक लकीर खिंच दे
इस दिल पर 
इसके दो टुकडे कर दे 
एक मै जुदाई 
दुजे मै मिलन 
इसके हिस्से भर दे 
एक लकीर खिंच दे................

बालकृष्ण डी ध्यानी 
देवभूमि बद्री-केदारनाथ 
मेरा ब्लोग्स 
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत 

कवी बालकृष्ण डी ध्यानी 
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