ग़मगीन मोसम
गम तो हलका होले
जीतना हो सके उतना तो रुले
दिल ना परवाह कर
ना कोई गिला ना शिकवा कर
गम तो हलका होले..........
नीर आँखों से तो भी अब बहले
दर्द अब तो कुछ बोला रे
तनहाई से तनहा कर के
अंगडाई मै अब सो ले
गम तो हलका होले..........
सागर की लहरों जर ठहरो
किनारों से ना अब वफ़ा करो
बेवफा है रेत की वो चादर
जिस पर गया तेरा नाम बहकर
गम तो हलका होले..........
रात की कली छाया देख
मन मेर आति घबराया
तनिक निकल आ वो चन्दा
बदली मै तुने भी मुंह छुपाया
गम तो हलका होले..........
गम तो हलक होले
जीतना हो सके उतना तो रुले
दिल ना परवाह कर
ना कोई गिला ना शिकवा कर
गम तो हलका होले..........
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
कवी बालकृष्ण डी ध्यानी
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