ये वतन
जो भी उठे हाथ मेरा
तेरा ही हो सहारा
मै हों मचलता एक सागर
तु है मेरा कीनार
डगमग डोले है कश्ती
मौजों की है तु धारा
भटक ग़र जाओं लक्ष्य से
तु खड़ा बनकर धुर्व तारा
नतमस्तक मेर शीश रहे
शीश पर रहे अंचल तुम्हारा
गर्वन्तीत मै रहों हमेशा
भारत देश है तु मेरा
कुर्बानीयों की है गाथा
सरहद पर तु ने जब भी पुकार
शीश हमरे कट भी गये गम नहीं
भारत हमारा भग्या विधात
जो भी उठे हाथ मेरा
तेरा ही हो सहारा
मै हों मचलता एक सागर
तु है मेरा कीनार
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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