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भुर रींगा


भुर रींगा

भुर रींगा रींगा रीगण लाग्यां 
कपाली भुयां खुँट आकाश गयां

एक दुई एक दुई सरपट गयां 
मुखी लोगों की बाग बाग़ गयां 

एक रेघा एक रेघा मा खोजी लियां 
गढ़ छुडना पैले जर सोची लियां 

खुदमा खुद लागै की खुदाण वहाली 
जीकोड़ी तुम्हरी तुम थै झुराण वहाली 

सारी मा गथोडी,ककडी लगी वहाली 
चूल्हा मा दुधी का सागा बाडी पक्की वहाली 

अन्ख्युओं मा चित्र रीटण वहाला
गद देशा की याद वा गीणना व्हाला 

कली पत्ती वा खाडू की सयाई
ओ बचपन मेरु झट अंगोल आयी 

बोई बोई की मील हाक दयाई
मील बोई यख कखक णी पाई 

जी की बात ये जी दगडी ही वहाई
वींक साथ सप्नीयुं दगडी ही ये रात गयाई

हर कुल्हण चुपके की बरखा वहाई
नुँना नुँनी जब जब याद आई

भुर रींगा रींगा रीगण लाग्यां 
कपाली भुयां खुँट आकाश गयां

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत 

बालकृष्ण डी ध्यानी 
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