वो रात
बदली ओर छुपा चाँद
वो काली सी रात
वो अधुरी सी बात
आगायी फिर याद
चाँदनी का था साथ
फुलों की थी बात
यादों के पलछिन मै
पत्तों की थी बस आड़
वो अधुरी सी बात
अंधेरी गली मै
उलझी एक पहेली
संग ना थी कोई सहेली
रात थी वो अकेली
वो अधुरी सी बात
दुरियाँ नजदिकियां
बढती घटती परछाईयां
दिये तले था छाया अँधेरा
क्या कुछ वंह पड़ा था मेरा
वो अधुरी सी बात
बदली ओर छुपा चाँद
वो काली सी रात
वो अधुरी सी बात
आगायी फिर याद
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
बालकृष्ण डी ध्यानी
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