डगर
डगर डगर
पर एक खबर
कुछ नयी सी है
कुछ पुरनी है मगर
यंह सबके सब रहा गुजर
चला था वंह
आकाश और क्षितिज
मीलते है जंहा
दो बिंब मे छुपा ये जहाँ
यंह सबके सब रहा गुजर
क्या खोज रहा है
क्या पायेगा यंह
पल पल सोच रहा
बस उलझन पायेगा वहं
यंह सबके सब रहा गुजर
शिवाले दरगह की
दीवार टकरयेंगी
ध्वनी नभ मे छायेगी
जब टकराव की स्थीती आयेगी
यंह सबके सब रहा गुजर
जब खोना पाना नहीं
बस सोना है जागना नहीं
जब रोना है हंसना नही
जग छुड़ना है खोजना नहीं
यंह सबके सब रहा गुजर
कैसी है ये डगर
मेरे ईशवर मेरे खुदा
आदमी आदमी से जुदा
लगे यंह सब बुझ बुझ सा
यंह सबके सब रहा गुजर
खो गयी वो डगर
ना जाने अब किधर
कोहरे की घनी चादर ले
सो गयी वो किधर
यंह सबके सब रहा गुजर
डगर डगर
पर एक खबर
कुछ नयी सी है
कुछ पुरनी है मगर
यंह सबके सब रहा गुजर
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
बालकृष्ण डी ध्यानी
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