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एक


एक 
हम एक हैं 
फिर घर क्यों अनेक हैं ?
एक को चार दीवारी 
दुजे को दुनिया सारी 
एक को छत ने घिरी 
दुजे ने मारी आकाश फैरी 

माँ और माई
क्या फर्क है भाई 
एक ने गैस मै रोटी पकाई
दुजे ने चूल्हे मै रोटी सैकाई
हम एक हैं 
फिर घर क्यों अनेक हैं ?

एक आगन का घेरा
दुजे का फुटपाथ का बसेरा 
तेरा भी वो सवेरा 
मेरा भी वो सवेरा 
हम एक हैं 
फिर घर क्यों अनेक हैं ?

दिल एक मंदिर 
फिर भी वो संग दिल है 
रहता है अलग अलग 
पर धडकने पर भी बिल है 
हम एक हैं 
फिर घर क्यों अनेक हैं ?

कैसा है चलन 
छलनी जैसा है गुलबदन 
एक खुसबु मै महकता है 
दुजा बदबु मै चहकता है 
हम एक हैं 
फिर घर क्यों अनेक हैं ?

एक 
हम एक हैं 
फिर घर क्यों अनेक हैं ?
एक को चार दीवारी 
दुजे को दुनिया सारी 
एक को छत ने घिरी 
दुजे ने मारी आकाश फैरी 

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत 

कवी बालकृष्ण डी ध्यानी
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