ये है कल्पना की उछाल
देख कल्पना की देख उछाल
उछाल गया दिल
उछाल गया मंजर
उछाल गया सागर
हो गयी उथल पुथल
देख कल्पना की देख उछाल.....
करने को अपने आप को साकार
उदित होआ नित नया संसार
रवि ने जलायी उजाले की माशाल
अपने अपने विचारों के साथ-साथ
देख कल्पना की देख उछाल.....
अब कवि और कलम की आयी बात
एक नयी कल्पना होगी अब साकार
मेज पर पन्नों की सुनो लो पुकार
गम और खुशी बीच बस ये संसार
दुःख के संग ही खिली हंसी बारंबार
अपने प्यार का जग करे क्यों इजहार
आँखों आँखों अब होने लगा इक़रार
दिल की धक धक की देख उछाल
देख कल्पना की देख उछाल.....
आपने से ही उछालकर कर गयी
कल्पना अब देखो बीच बाजार
बैठा था मै घर मे सोच घूम रही थी उस बन मे
अपने ही लोगों से मे मिल रहा था
जिसे गैर मे अब तक समज रहा था
अकेले अकेले सब जीये जा रहे थे
अपने ही पल और गम मे घुले जा रहे थे
समय के साथ जैसे बहे जा रहे थे
मेरे मन और अकेलेपन की तरह
एक एक कर मुझ से रिश्ता जोड़े जा रहे थे
देख कल्पना की देख उछाल.....
कल्पना वंह से उछालकर पुहंची एक बाग़ मै
उसमे खिल रहे थे गुल आशीकी भी थी भुल दुर उड़ रही थी धुल
दिल से क्या वे दिल मिल रहे थे या वासना मे जैसे वे घिर रहे थे
एक नये प्रेम की भाषा थी जिसमे जवानी वासना की अभीलाषा थी
देख ऐसी रासलीला मीराँ ने भी अब दर वो भुलाह
ना भायी जगह को प्रेम की ये नयी बोली
दुखी मन लेकर बाग़ से विदा होई कल्पना की डोली
देख कल्पना की देख उछाल.....
दुःख से विदा होकर कल्पना बागा से बाहर आयी
एक बुजुअर्ग के आँखों से जा टकराई
जीवन की सच्चाई ने थी आंखें छलकाई
एक युग ने कहनी दो शब्दों मे सुनायी
जो कुछ होता है वो तो होना ही है
फिर किस लिया यंह तेरा रोना है
उनकी बातों से हो हैरान कल्पना लिया एक विराम
कुछ पालो के बाद वो आगे बड़ी अब हो गयी थी वो भी बड़ी
देख कल्पना की देख उछाल.....
राह मे चलते चलते कल्पना मे मोड़ आया
दुर छुड पर वो देखो देखो एक छोर आया
एक नये पोधे की तरंह वो बचपन अंकुराया
उस नन्हे सपनो के साथ साथ एक जोश आया
अब मेरी बारी है मुझे भी निभानी अब दुनिया दरी है
कल्पना की गठरी अब मुझे उठानी है
मेरे दिल ये बात मानी और ठानी है
कल्पना आज भी है कल भी थी और कल भी रहेगी
ये मेरी कल्पना की थी उछाला देख कल्पना की देख उछाल.....
काश मेरी कल्पना मिल जाये दिख जाये आपको
साथ साथ अपने कल्पना का भी देना मुझे साथ
जोड़ा दे इस मे अब तेरा साथ जैसे विहंग उड़े आकाश
जिसे नये शब्दों के साथ जोड़ राह एक नये विश्व नीर्माण
ये है कल्पना की उछाल ये है कल्पना की उछाल
ये मेरी कल्पना की थी उछाला देख कल्पना की देख उछाल.....
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blog spot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
कवी बालकृष्ण डी ध्यानी
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