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सपना


सपना 

एक सपना पलता है 
गुल वो अपना खिलता है 
रहते झुगी बस्ती मै पर 
हमसे ही देश चलता है 
एक सपना पलता है ........

दूर खडी इमारतों मै 
एक अकेलापन दीखता है 
साथ जुडी है जिस तरह हम 
दिल क दिल से रिश्ता लगता है 
एक सपना पलता है .........

सुख से जुडे हम  इस तरह 
हर गम अब हल्का लगता है 
गरीबी की रेखा के नीचे है हम 
पर  हमारा कद अब ऊँचा लगता है 
एक सपना पलता है .........

देश की रीढ़ है हम 
क्या तुम्हे सब सपना लगता है ?
छुटे घर हैं पर दिल है बड़ा 
अब सब कुछ अपना लगता है  
एक सपना पलता है .........

एक सपना पलता है 
गुल वो अपना खिलता है 
रहते झुगी बस्ती मै पर 
हमसे ही देश चलता है 
एक सपना पलता है ........

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत 

बालकृष्ण डी ध्यानी 
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