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लड़कपन प्रेम


लड़कपन प्रेम 

ये काया है 
बड़ी महामाया
इसने लोभ जगाया 
इसने जग दिखया 

इस नगरी की 
डगर मनहोर
रहता ना खुद पर जोर 
उस बिन दिल है बोर 

आशुं का उठाता शोर  
नयनो बसा माखन चोर 
वर्षा गिरी अति घनघोर
मुख कहै ओनस मोर 

दिन रात ना फर्क कोई 
आये गये  मोड़ कई
माँ बाप सब छोड़ कंही 
बसाये दुनिया ओर कंही 

प्रेम और ये काया 
वासना की छाया 
इस गिरफ्त से ना मै
ना तो भी बच पाया 

मानस जग हरा 
कलयुगी दुःख गहराया 
विलास और सुख मै 
अपनों का गम बिसरया

वेदना है अब हर जगह 
तड़प और उस का पन
प्रेम नहीं ये है लड़कपन 
मन फिरता अब बण बण 

ये काया है 
बड़ी महामाया
इसने लोभ जगाया 
इसने जग दिखया 

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत 

बालकृष्ण डी ध्यानी 
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