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माटु रै



माटु रै

कुच त बोल तू
भेद उघड़ी मन का
कुच त बोल तू
माटु रै

ना सुदी बैथि रै
ना लूटयूँ रै तू
लिपी रै
माटु रै

सरीर साथ तू
अचु बुरु भाग तू
मेरु ज्यूंदगी कू
माटु रै

हैंसी खेळी
चत कखक गैनी
रुयै रुळै की
माटु रै

दगड्या तू दगडी
मौल्यार ऐ तैमा
कबि उजाड़ा ऐ
माटु रै

बरखा नचे कबि
घाम मा हाल वै
ह्युंद मा जमे
माटु रै

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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