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मैं कुछ समझा नहीं


मैं कुछ समझा नहीं

मैं कुछ कह सका
मैं कुछ ना कह सका
जो रह गया
दर्द बन कर वो बह गया

कैसा जीना मेरा
कैसा मरना मेरा
खुद की लाश कंधे पे रखकर
उम्र भर उसे यूँ ढोता रहा

मैं भी चुप रहा
वो भी खामोश रही
मौसमी दौर वो बस गुजरता गया
वक्त चुपके से मगर सब कह गया

आँसूं आये मगर
वो कभी ना खुल के रो सके
बंद बंद सा ही रहा
मेरे संग वो हंसी का सफर

बात समझा नहीं
यंहा किसने बात साफ़ साफ कही
अभी भी वो धुंधला चला
ना जाने कौन और कौन सी डगर

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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