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वो कविता


वो कविता

वो कविता
मेरे पहाड़ों की
पहाड़ों की वो कविता
अभी तक ना लिखी
ना सोची किसी ने अभी तक
ना देखी ठीक से
अब तक
सब समाने थी पसरी
वो कविता
मेरे पहाड़ों की
पहाड़ों की वो कविता

काटों पे
खिलते फूल देखे
दुःख में भी
हँसते वो कैसे लोग देखे
आँखें वो भीगी
यादों में डूबी
रातों का वो इंतजार
सुबह वो बेकरार
ना लिख पाया मै
अब तक
वो कविता
मेरे पहाड़ों की
पहाड़ों की वो कविता

भूख है वो
प्यासा है वो
अपने सपनों का साँचा है वो
वो उसकी तड़प
वो उसकी वेदना
ना जान पाया कोई
ना उससे सबक ले पाया कोई
लिखने बैठे हैं सब पर
उसे ठीक से ना लिख पाया कोई
रह गया वो
रह गयी मेरी अधूरी
वो कविता
मेरे पहाड़ों की
पहाड़ों की वो कविता

कितने मौसम आये यंहा
वो चले गये
कुछ भीगा कुछ सुखा कर
वो चले गये
अब भी बैठी है वो
बिरह की सूली पर
अपने लोगों की वो बोली पर
रंगी तीन रंग की डोली पर
जल रही है अपनों की होली पर
वो कविता
मेरे पहाड़ों की
पहाड़ों की वो कविता

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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