जीन्दगी
आंख मीचोली करती जिन्दगी
एक पल है दूजे पल नदारद
कभी सुख तो कभी दुःख है
सामने हसीन पीठ पीछे दोजख
कैसी ये जिन्दगी
आंख मीचोली करती जिन्दगी
कंही सर्द कंही गरम है
कंही भख है कंही प्यासहै
कंही हंसी तू कंही रुदन है
कैसी ये जिन्दगी
पर्वत की चुँटी कंही खाई
कभी हडबडी कंही आराम है
कंही बरसात तू कंही बड़ा है
कंही सुखा तू कंही अकाल है
कैसी ये जिन्दगी
कैसी भी हो जिन्दगी
सबको लोभती
मरने के डर से
खुद भाग जाती है
आंख मीचोली करती जिन्दगी
एक पल है दूजे पल नदारद
कभी सुख तो कभी दुःख है
सामने हसीन पीठ पीछे दोजख
कैसी ये जिन्दगी
बालकृष्ण डी ध्यानी
कवी बालकृष्ण डी ध्यानी
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