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मै उत्ताराखंड......

अधर पटल पर खड़ा मै
कर रहा विहंग विहल
एक एक कौंद जाती दामनी सी
मेरे अंतर पटल

खोजों मै उन्हे हर पल
जो गये मुझे छुडकर
बीच धार नाता तुडकर
अन्तकरण की पुकार
पुकारती है बार बार

अधर पटल पर खड़ा मै....
कर रहा विहंग विहल
एक एक कौंद जाती दामनी सी
मेरे अंतर पटल

तब मै बंधा होआ था
अपने आप मै कशा था
कैसे रुकता तुम्हे मै
पग को कैसे अड़ता मै
अधर पटल पर खड़ा मै....
कर रहा विहंग विहल
एक एक कौंद जाती दामनी सी
मेरे अंतर पटल

आज मैने संसा लिया
खुली हवा ओडलिया
अपने अंचल फैलाकर
केई को अपनी और मूड लिया है

अधर पटल पर खड़ा मै....
कर रहा विहंग विहल
एक एक कौंद जाती दामनी सी
मेरे अंतर पटल


अब तुम्हारी बारी है

मै उत्तराखंड आप को बुला रहा हूँ कब आओगे ?


बालकृष्ण डी ध्यानी
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