जंगल बचोला
दीदा चल खेल खेलोला
चल एक एक पेड़ लगोला
जंगल बचोला म्यार दीदा
अपड़ा पहाड़ सजोला
हे दीदा चल खेल खेलोला
कण उजड़ा होयींचा दीदा
डंडा हमारा रीता रीता
पहड़ थै अपड बनोला
यूँ दगडी माया लागोला
हे दीदा चल खेल खेलोला
जंगल बचोला
मेरा गों गोंल्यूं की तरह
म्यार रीत मनख्यूं की तरह
म्यार डंडा भी ध्यै लगण
मी थै अपड़ा घार बोलंदा
चल एक एक पेड़ लगोला
जंगल बचोला
घुघूती अब घुरंदाणदीणी
बोरंश प्योंली लज्जणन्दीणी
अपड़ा जंगलों याद अनणदीणी
झाड़ टोक बैठी की बंसी बजणदीणी
अपड़ा पहाड़ सजोला
जंगल बचोला
दीदा चल खेल खेलोला
चल एक एक पेड़ लगोला
जंगल बचोला म्यार दीदा
अपड़ा पहाड़ सजोला
हे दीदा चल खेल खेलोला
जंगल बचोला
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
कवी बालकृष्ण डी ध्यानी
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