विस्मीत स्थीती
कोमलता हो या प्रखर
सेतु होआ जो निर्मित
निर्मल रहे वह निरंतीत
समानीत ओर रहे संतुलित
कोमलता हो या प्रखर ........
विहंग की उड़न से उछालीत
मत्स्य अब जल मै प्रवाहीत
तनिक विलम्ब पर लक्ष्य केद्रीत
संसार स्वंयंम संचार रचेयता
कोमलता हो या प्रखर ........
रवि की किरणों से पखारीत
चाँद की है चांदनी प्रमाणीत
दिन की परिभाष अगणीत
रात की मधुरता रहे अमिट
कोमलता हो या प्रखर ........
अलग पर संगघठीत
विचारों की भाष से एकनिष्ट
एकलव्य सा लक्ष्य छेदित
अर्जुन से बिलकुल विपरीत
कोमलता हो या प्रखर ........
कोमलता हो या प्रखर
सेतु होआ जो निर्मित
निर्मल रहे वह निरंतीत
समानीत ओर रहे संतुलित
कोमलता हो या प्रखर ........
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
बालकृष्ण डी ध्यानी
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