सर्द
सर्द ठीठोरती रोती है
अकेले आंखें भीगोती है
दूर
बिछी बर्फ की चादर
अब कुछ कहती है
अंगडाई भी ना लेती है
हरियाली दबी रहती है
सर्द ठीठोरती रोती है
अकेले आंखें भीगोती है ...........
देखो
साथी ना सहेली है
बिलकुल वो अकेली है
श्वेत रंग को ओढी है
भग्या भरोसे छुडी है
सर्द ठीठोरती रोती है
अकेले आंखें भीगोती है ...........
प्रकृती
छुप जाते सब रंग
पतझड का वो मोसम
फुल ना ही खिलते हैं
भोंरें अफशोस करते हैं
सर्द ठीठोरती रोती है
अकेले आंखें भीगोती है ...........
पहाड़
अपनों को ही खोता हूँ
जुदा हर पल होता है
मै खाली ऐसे ही होता हूँ
सर्द के साथ भी रोता हों
सर्द ठीठोरती रोती है
अकेले आंखें भीगोती है ...........
शहर
मौज मस्ती मन है
यंहा अलग ही ढंग है
कोई मुझ से ठीठोरत रातों मै
कोई कंबल औढे सांसों मै
सर्द ठीठोरती रोती है
अकेले आंखें भीगोती है ...........
मन
मेरे मन की ये अग्न
ढ़ोंहडैगी अब तेर घर
तेरे तन की औ तड़पन
जलती होगी अब चिलमन
सर्द ठीठोरती रोती है
अकेले आंखें भीगोती है ...........
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
बालकृष्ण डी ध्यानी
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