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ओझल

ओझल

फिर अब बस अब तो
देख जरा तु इस पल को

कांहीं खड़ा है कंही बैठा
कंही चल रहा कंही थमा

कभी साँस के साथ जुडा
कभी उससे होआ जुदा

कभी कंधे से दिखा झुखा
कभी सीने साथ मिला ताना

कभी पांन की तरंह चबा
कभी दीवारों पर पाया थूका

जंहा पाया मैने उस पल को
खोया उसे मैने दुजै पल को

फिर नासमझ उस पल को
बोझल होआ वो उस कल को

फिर अब बस अब तो
देख जरा तु इस पल को

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत

बालकृष्ण डी ध्यानी 
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