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खुद को देखा कभी


खुद को देखा कभी 


दर्पण मै जब देखा आपने को
कोई और सा लगा उस सपने को
मै मै ना था कोई और खड़ा था 
फिर क्यों लग रह था अपना सा 
दर्पण मै जब देखा आपने को...................

बात कीया जब मैने सपने से 
दर्पण मै खड़ा उस आपने से 
मुख ना खुला उसने जरा सा भी 
मुस्कुरा दिया उसने बस होलै से 
दर्पण मै जब देखा आपने को...................

मुश्काना भी अंनजना सी लगी 
खुद को खुदा की पहचाना मै लगी 
खुद को कभी देखा था ठीख से 
अपने ही आप से ऐ बोला था कभी 
दर्पण मै जब देखा आपने को...................

दर्पण मै जब देखा आपने को
कोई और सा लगा उस सपने को
मै मै ना था कोई और खड़ा था 
फिर क्यों लग रह था अपना सा 
दर्पण मै जब देखा आपने को...................

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत 

बालकृष्ण डी ध्यानी 
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