मन दर्पण
अंत मन दर्पण
किसे खोजता है
अपने आप से ही
तो क्यों बोलता है
अंत मन दर्पण .................
सत्य की परख पर
क्यों झूठ तोलता है
इस मुख से ही क्यों
तो अब बस बोलता है
अंत मन दर्पण .................
फर्क मै भी अब बस
फर्क ही दिखता है
जब बोलना था तुझे
तब तो मौन रहता है
अंत मन दर्पण .................
तो भी तो हो गया
अब उन जैसा ही
जंहा अब खुले आम
बस फरेब बिकता है
अंत मन दर्पण .................
इंसान है तो बस
बस तेरा अहम बोलता है
पल पल यंहा तेरा
बस ऐ रूप बदलता है
अंत मन दर्पण .................
अंत मन दर्पण
किसे खोजता है
अपने आप से ही
तो क्यों बोलता है
अंत मन दर्पण .................
हिर्दय इंसान का आईना !!
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
बालकृष्ण डी ध्यानी
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