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पगडंडीयां


पगडंडीयां 

याद तुम्हे जब आती होगी
हरपल वो सताती होगी 
बैचैन कर जाती होगी 
अकेले अकेले आंखें भीगाती होगी 
वो छुटी पगडंडीयां जब बुलाती होंगी 
गावं की याद आ जाती होगी .............

तेडे मेडे जब चलता था 
तेडे मेडे पथ पर सहरा लेकर 
उन हाथों को क्यों भुला 
बड़ा होआ उन राहों पर चलकर 
अब भी छुपी होगी याद कंही छुटी 
बचपन उन पगडंडीयां पर 
वो छुटी पगडंडीयां जब बुलाती होंगी 
गावं की याद आ जाती होगी .............

श्नण प्रतिश्नण तेरा गुजरा यंहा 
पल पल तेरा जो अपना छुटा यहं 
बढता जो गया रिश्ता छुटता गया 
पगडंडी जो जाती थी घर तक 
उससे ही तो आज दूर हो गया
कभी तो उस घर की यादा आती होगी 
सपनों मे तुम्हे वो लै जाती होगी 
जवानी नै छुटी वो पगडंडी
गावं की याद आ जाती होगी .............

याद तुम्हे जब आती होगी
हरपल वो सताती होगी 
बैचैन कर जाती होगी 
अकेले अकेले आंखें भीगाती होगी 
वो छुटी पगडंडीयां जब बुलाती होंगी 
गावं की याद आ जाती होगी .............

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत 

बालकृष्ण डी ध्यानी
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