खामोश निगाह
शांत सरल निश्चल
विरल भाव से निहार रही
ऐ खामोश निगाह
कीसकी राह ताक रही है
अतंर वेदाना का बांध
संभाले चक्षु उनका स्थान
प्रीत स्नेह का वो धाम
हम करें क्योँ उन्हें बदनाम
स्थील मुरत विलक्ष्ण आभा
चंद्र करोलीत है उसकी वो कांता
घुंघट मै छुपी वो बदली
अब तो हंस दे वो पगली
देखे जा रही स्थिर मार्ग
अवरुद्ध है अब हर वो द्वार
जिस संग ब्याह वो ब्याही
इन्तजार की अब घड़ी आयी
शांत सरल निश्चल
विरल भाव से निहार रही
ऐ खामोश निगाह
कीसकी राह ताक रही है
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
बालकृष्ण डी ध्यानी
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