धरा अब देखे
सूखे की है मार
अब खेती बनी बीमार
बरखा पहुँची आंसूं पार
आकश देख बस ताक
जल विहल थल नभ
बूंद बिना सब है स्तभ
चिंताओं की रेखा अब
धरा पर उभर उभर कर
मैदान हो या पहडा
प्यास से सबका बुरा हाल
गर्मी अपनी चरम पर
विस्मीत अब उस मन पर
क्या मानव क्या पक्षी
क्या डाली क्या फुलपत्ती
परेशान विकल खड़ा वो
धरा देखे बस उस नभ को
सूखे की है मार
अब खेती बनी बीमार
बरखा पहुँची अब आंसूं पार
आकश देख रहा बस ताक
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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