ADD

धरा अब देखे


धरा अब देखे 

सूखे की है मार 
अब खेती बनी बीमार
बरखा पहुँची आंसूं पार 
आकश देख बस ताक

जल विहल थल नभ 
बूंद बिना सब है स्तभ 
चिंताओं की रेखा अब 
धरा पर उभर उभर कर 

मैदान हो या पहडा
प्यास से सबका बुरा हाल 
गर्मी अपनी चरम पर 
विस्मीत अब उस मन पर 

क्या मानव क्या पक्षी 
क्या डाली क्या फुलपत्ती
परेशान विकल खड़ा वो 
धरा देखे बस उस नभ को 

सूखे की है मार 
अब खेती बनी बीमार
बरखा पहुँची अब आंसूं पार 
आकश देख रहा बस ताक

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत 

बालकृष्ण डी ध्यानी
Reactions

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ