साथ तुम्हरा
बैठ मेरे सामने
हाल अपना सुनाओं
गम मै छुपाओं
खुशी के गीत गाओं
बैठ मेरे सामने ...................
सुबह की भोर
में मै तुझको पाऊँ
वो किरणों के स्पर्श का
अहसास कैसे छुपाऊँ
बैठ मेरे सामने ...................
दोपहर की गर्मी मे
मै फिर तुझको ढूंड लाओं
उस नरमी को मै कैसे भूल जाऊँ
वंहा भी साथ तेरा पाऊँ
बैठ मेरे सामने ...................
संध्या ढलते ही
हाथ आपना बड़ाओं
पर तुम्हे मै अब भी
पास आपने ही पाऊँ
बैठ मेरे सामने ...................
रात्री के सपने ही
अब लगते है अब अपने
उन संग ही मेरी प्रिये
मे साथ तुम्हरा पाऊँ
बैठ मेरे सामने ...................
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
बालकृष्ण डी ध्यानी
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