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अभी भी



अभी भी

अभी भी
प्यास छुपी हैं
अभी भी
आस दबी है ...२

जग ही जाती है वो रात
जिस रात , तेरी जब बात छिड़ी है

अभी भी
आरमां छुपे हैं
अभी भी
पहरे लगे है ...२

आ रहे हैं पल, पल यादों के साथ साथ
वो भूली सी वो बिसरी बात लगी है

अभी भी
राज छुपे हैं
अभी भी
शाम ढली है

साथ उनके ही ,वो जली है बुझी है
जो बत्ती संग संग मेरे जली है

अभी भी
प्यास छुपी हैं
अभी भी
आस दबी है ...२

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत

बालकृष्ण डी ध्यानी
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