आब-ए-आईना दमक थी
अब आब-ए-चश्म में वो बहा गयी
आब-ए-तल्ख़ का जल वो
आबरू पर वो ऐसे बिलख गयी
दामिनी की आवाज़ह भी वो
आह में बस वो गुम हो गयी
निर्भय थी वो भी मोहतरमा
अकस्मात ही वो गुजर गयी
आबरू पर वो ऐसे बिलख गयी
इक़बाल इक़रार इक़्तिज़ा किया था उसने
इख्लास इज़्ज़त इज़्हार ना वो कर सकी
इजाज़ इजाज़त इत्माम इत्लाफ़ था इतना
इत्तिफ़ाक़ से इत्तिका वो बन गयी
आबरू पर वो ऐसे बिलख गयी
इन्तज़ार है इन्तिक़ाम उस रूह को भी
इब्तिला इबादत की इबारत इमान ढाह गयी
उक़ूबत का हर्ष उबाल की उरियां का उरूज है
उफ़्क पर वो इन्सानियत का अब सबब बन गयी
आबरू पर वो ऐसे बिलख गयी
आब-ए-आईना दमक थी
अब आब-ए-चश्म में वो बहा गयी
आब-ए-तल्ख़ का जल वो
आबरू पर वो ऐसे बिलख गयी
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
बालकृष्ण डी ध्यानी
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