यूँ ही लगा है
यूँ ही लगा है ये मेला यंहा
निकले हुये है क्यों सब साथ को
यूँ ही लगा है ......................
अकेला मंजर चला था मगर
इस कोने से लेकर उस मजार तक
यूँ ही लगा है ......................
भीड़ भाड़ का था तेरा सफर
पालने और बस उस अर्थी के हाथ तक
यूँ ही लगा है ......................
छोड़कर जाना था अगर
क्यों आपनाया माया के सार को
यूँ ही लगा है ......................
देख कली खिली थी दो पल
पर फिर भी तू उलझा रहा जाल में
यूँ ही लगा है ......................
यूँ ही लगा है ये मेला यंहा
निकले हुये है क्यों सब साथ को
यूँ ही लगा है ......................
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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