यादों में बसी हो तुम
आज की बात है या बहुत पुरानी वो राह
चले हम तुम थोड़ी देर यंहा थोड़ी देर वंहा
सदा साथ था तुम्हार अब साथी तुम कंहा
रह गयी बस याद और आज की बात यंहा
कोपल का खिलना,तेरा वो मुझसे मिलना
याद दिलाता है बसंत,पतझड़ बस अब मन
खिल जाती हो तुम इस तरहा कभी कभी
पतझड़ में भी जैसे हो हरयाली आके बसी
दिख ही जाती हो तुम मील ही जाती हो तुम
साथ मेर बस तुम यूँ ही खूब बतियाती हो
पहले तेरा इतना बतियाना अखरता था मुझे
कर्ण उस ध्वनी को हर समय तरसता रहता है
अँधेरे में तुम मेरा उजाले की थी वो किरण
कैसा है लगा इस समय को अब ये ग्रहण
उन गलियों में कभी साथ मिलता तुम्हरा
अब उस ही गलियों में अब भी मै चला करता हूँ
आज की बात है या बहुत पुरानी वो राह
चले हम तुम थोड़ी देर यंहा थोड़ी देर वंहा
सदा साथ था तुम्हार अब साथी तुम कंहा
रह गयी बस याद और आज की बात यंहा
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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