बदलते चेहरों में
बदलते चेहरों में एक चेहरा मेरा भी है
दूर बैठा हूँ परदेश एक गाँव मेरा भी है
बदलते चेहरों में …………….
चले थे कदम कुछ दूर ,ना वापस आ सके
कंही दूर मुंडेर पर आने की वो आस अब भी बाकी है
बदलते चेहरों में …………….
बदल तो मै भी गया हूँ बदल तो वो भी रहा
वंहा बूढी आँखों में अब भी वो खारेपन की मीठास बाकी है
बदलते चेहरों में …………….
पीपल के पेड़ के निचे ठंडी छाँव के वो बादल
मेरी यादों में बरसने को वो तैयार अब भी बाकी हैं
बदलते चेहरों में …………….
बदल तो मै इतना गया हूँ की हिम्मत ना होती वापस जाने की
अक्षर बनकर अब तो वो भी तैयार इस कोरे पन्ने पर आने को
बदलते चेहरों में …………….
बदलते चेहरों में एक चेहरा मेरा भी है
दूर बैठा हूँ परदेश एक गाँव मेरा भी है
बदलते चेहरों में …………….
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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