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बात मेरी मान जा


बात मेरी मान जा

उम्र तो ढलने के लिये है
नया दिन निकलने के लिये है

रोशनी आती उस रोशनदान से
वो मुझसे मिलने के लिये है

पल पल बिछड़ने के लिये है
हर एक कल पड़ने के लिये है

सोचना वो जो आने वाल कल है
पछताना वो जो बिता हुआ पल है

सिख लेती है सिखा लेती है
जो कल कल बहती ये जिन्दगी है

बस बहते चलो इसके संग संग
एक एक अंग वो संवर लेती है

ना उदास हो ना हताशा हो
बात मेरी मान ना आयेगा ये पल

उम्र तो ढलने के लिये है
नया दिन निकलने के लिये है

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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