वो राह
दिल में बसा गम था तेरा
बाकी रहा उसमे मै ना रहा
आती रही सांस होने जुदा
धड़कता रहा वो गुमसुम खड़ा
सुस्त कदमों ने मुझसे कहा
कह दे उस राह को तू अलविदा
मोड़ के ना देख अब तो पीछे जरा
कोई ना अब उस मोड़ पर खड़ा
तू ही है रब अब तू ही है खुदा
अँधेरे कि और जब मै चला
होगा कोई वंहा मेरा खड़ा
आस का दीप मेरा जलाये हुये
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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