मेरे लिये
नजरों ने तेरी कहा रोक जा मेरे लिये
कैसे कर दूँ बयां तू क्या है मेरे लिये
नैनों के आगे तुम हो
नजरों के अंदर हो तुम
पलकें खुली हो या बंद
इस दिल की धड़कन हो तुम
ना कोई शिकवा है ना शिकायत
मजहबों से बड़ी है ये मोहब्बत
खुदा का नूर सा वो टपकता
रहमत उस यार के बंदगी में
आँखों की भाषा लिखी पड़ी
रोक जा पढ़ ले उसे दो घड़ी
सांसों की रफ़्तार चढ़ी थमी
चाहे मिले दोजक या इसे जमी
धड़कता ही रहा वो सीने में
असल मजा इस संग जीने में
रुक्सत हो जाना सबको एक दिन
डूब जा कतरा कतरा उन सांसों को पीने में
नजरों ने तेरी कहा रोक जा मेरे लिये
कैसे कर दूँ बयां तू क्या है मेरे लिये
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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