जलता ही रहा
वो जलता
सिगरेट का धुँआ
वो जलता दिल
हर कश पर
घिरी मुश्किल
अंदर भी दाब
बाहर भी उभरा
ना जाने इस सीने
क्या क्या बिगाड़
छलों छिला है
तानों से बुना है
बेगानों से ज्यादा
अपनों से पिटा है
हर सांस संग
बहता रहा दर्द
कहता रहा बस
एक ओर कश
वो जलता
सिगरेट का धुँआ
वो जलता दिल
हर कश पर
घिरी मुश्किल
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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