मैं पेड़ से लटका शव हूँ
मैं पेड़ से लटका शव हूँ
रस्सी गले कसी फंसा शव हूँ
निर्जीव शरीर संग झूला शव हूँ
जीवन कंही दूर खड़ा था
खड़ा देख वो मुझे निहार रहा था
क्या करता अब मैं जब लटका शव हूँ
क्यों परेशानी से भाग रहा था
क्या तंगी बैचैनी थी जो मार रही थी
दुःख-दर्द वो ना सह सका शव हूँ
प्रेम भंग ये होना ही था
गरीबी का वो रोना रोना ही था
जीवन के पथ से मै एक हारा शव हूँ
हिम्मत को क्यों छोड़ा मैंने
दुनिया से क्यों मुख मोड़ा मैंने
जीना छोड़ मरण से नाता जोड़ा शव हूँ
नेताओं की बातों से परेशान शव हूँ
राजनीती के पेंच से लटका शव हूँ
अपने अपनों से मैं भटका शव हूँ
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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