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द्वि भैनी



द्वि भैनी

द्वि भैनी बैठिक छँवि च लगनी
पहाड़े कु ठंडो पानी बगदि जनू

बगत अब अपरू कथा च लगानू
द्वि आंसूं तेर द्वि मेरा भैनी चुलानू

दिस इनि अला सुधि बित ही जला
सोची रेगे हम द्वि थे कन चार बणला

सौंण- भादों की कन बरखा लगींच
पुरू गढ़वाल मेरु वैमा झिर-झिर भीज्युं च

खुद आंदा जांदा रैंदा बिता सड़की ऊ मोड़
हुम्लु कैथे ध्ये लगान अब जणा कै ओर अ

द्वि भैनी बैठिक छँवि च लगनी
पहाड़े कु ठंडो पानी बगदि जनू

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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