फिर कै गंगा कू घाट सुमि ?
चल गंगा कू घाट सुमि घुमी ओंला
पानी पूरी कचोरी खूब छके कि खैईं ओंला
चल गंगा कू घाट सुमि
नमामि गंगे हर हर गंगे बल हम चंगे
बेधड़क हमुन करन यख धंधे कन ये बन्दे
चल गंगा कू घाट सुमि
फूल दीप अगरबती सब बोगी ओंला
आस्था कू नौ परी गंगा मा घाण कैरी ओंला
चल गंगा कू घाट सुमि
सैर स्फाटा कू ब्यापार अब यख हुयुंचा
हरकीपौडी कया सबी जगा ये रोग पसरुंचा
चल गंगा कू घाट सुमि
पैठणा कु बेल व्हैगे ऐ सुमि
गंगा कु लुप्त हुना कु बेल करीब ऐगे
फिर कै गंगा कू घाट सुमि घुमी जोंला ?
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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