रूप की तू ख्ज्यानी छे
रूप की तू ख्ज्यानी छे
तू भली देखेनि भाग्यानि रे
तू छे ऊ डाली का फूल .... २
जो बल बारा मैना फूलालि रे
रूप की तू ख्ज्यानी छे
दंत पंक्ति ये उजाळि छे
कन हुली आँखि तै खोज्याली रे
रातों का ऊ गैणों का माळा
देकि ते कया बचणा हुला
रूप की तू ख्ज्यानी छे
में ना पूछ सब तेथे खोजणा छ्या
तेरा रूपा का सब दीवाणा रे
बौल्या बने की मि पुछनि छे तू
तेरो ठौर तेरो कख छ ठिकाणों रे
रूप की तू ख्ज्यानी छे
बारा मैनो की बारा ऋतू छे तू
सोलहा दिसा मां अब तेरो ठिकाणों रे
अंदि जांदी मेर ये स्वास थे तू बोल्दे
कै बाटा कै घार तिल आच जणू रे
रूप की तू ख्ज्यानी छे
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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