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ना जाने क्या ढूंढ रहा हूँ मैं


ना जाने क्या ढूंढ रहा हूँ मैं

ना जाने क्या ढूंढ रहा हूँ मैं
ना जाने कब से
क्या खो गया है वो
क्यों खो गया है वो
क्या है वो मेरा
क्यों इतना परेशान हूँ मैं
क्यों इतना चिंतित
ना जाने क्या ढूंढ रहा हूँ मैं
ना जाने कब से

किसने कहा वो सूरज है
किसने कहा श्याद वो चंदा होगा
लेकिन वो मुझे क्यों पता नहीं है
वो क्या मेरा होगा
जो खो गया है वो मुझसे
वो इतना दूर चला गया है अब मुझसे
फिर क्यों वो मेरा होगा
या मैं उससे दूर हो गया हूँ खुद से
कुछ समझ नहीं आ रहा मुझे
कुछ खबर भी कोई अब क्यों लाता नहीं
क्योंकि वो अब पुराना पता मेरा खो चुका है
जिस पर कभी चिट्ठियां आती थी मेरी
वो आंसूं पाती कुछ कह जाती थी
सुन नहीं सका उन अक्षरों को
तब मैं जब मैं अपने में था
अब तो मैं अपने से गुम हो चुका हूँ
कब से ना जाने क्यों
इस बात की क्यों खबर मुझे लगी नहीं

ना जाने क्या ढूंढ रहा हूँ मैं
ना जाने कब से
क्या खो गया है वो
क्यों खो गया है वो
क्या है वो मेरा
क्यों इतना परेशान हूँ मैं
क्यों इतना चिंतित
ना जाने क्या ढूंढ रहा हूँ मैं
ना जाने कब से

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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