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पहाड़ टूट रहे हैं



पहाड़ टूट रहे हैं

पहाड़ टूट रहे हैं
या पहाड़ को कोई तोड़ रहा है
अपना खड़ा दूर उस से बहुत दूर
बस दूर से देख कर मुस्कुरा अपना मुंह मोड़ रहा है

जलता है कभी वो खुद से
कभी कोई आ कर उसे जला रहा है
पानी तो बहुत है लबालब भरा हुआ
पर आज उसका ही वो पानी उसे तरसा रहा है

खिसक रहा है अचानक चूर हो रहा है
रो रहा है वो अब अकेले मजबूर हो रहा है
मूक है चुपचाप अलग थलग पड़ा
खोद खोद कर उसे अब कोई उसे लूट रहा है

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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