ADD

की तुम रूठ ना जाना



की तुम रूठ ना जाना

लौटकर आओगे ,मिलकर गीत गाओगे
एक तरना नया नया ,एक दिवाना नया नया

कली जो फूल बनी है ,नाजों से वो पली है
गुल्सिताँ ने उसे खिलाया,मुस्कुरा के वो चली है

खुले खुले हुये गेसू हैं ,घिर गयी हो बदलियां
झुकी मेरी वो निगाहें,गिराये जैसे बिजलियां

इन नाचते क़दमों में,मौसम का है खज़ाना
हर एक के लब पर,अब मेरा ही है फ़साना

झूमना मचलना मेरा ,अब यूँ बदल बदल के
धड़क रहा है दिल मेरा ,अब सम्भल सम्भल के

रुक ना जाये मोड़ पर,कहीं अब ये मेरा ज़माना
साँसों को कह दे इतना ,की तुम रूठ ना जाना

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http://balkrishna-dhyani.blogspot.in/search/
http://www.merapahadforum.com/
में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुरक्षित

बालकृष्ण डी ध्यानी
Reactions

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ