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मैंने देखा है आज घुघूती को घुघते हुये




मैंने देखा है आज घुघूती को घुघते हुये  

मैंने देखा है आज घुघूती को घुघते हुये  
ना हँसते हुये उसे ना उसे रोते हुये
ना  नियोली को देखा आज मैंने उड़ते हुये  .
ना फ्योली को देखा आज मैंने फूलते हुये

पहाड़ों के सीने आज कल क्यों धड़कते नहीं
वो चलते कदम चलते जाते हैं वो क्यों रोकते नहीं
मैंने देखा आज पहाड़ों को अकेल में सिसकते होये
अकेले अकेले खुद से ही दूर दूर खिसकते हुये

ना कोई ख़्वाब देखता है ना कोई आवाज देता है
उड़ते परों को ना कोई खुद ब खुद कतर देता है
नींदों में चलते अब सब के सब यंहा बेहोश होकर
होश मैं लाने की यंहा अब कौन राह ताकता है

ख़ामोशियों की आवाजें बस अब यंहा तैरती रही
बादलों की वो सुनहरी धूप अब यंहा चटखती नहीं
बुझी आंखों में कोई ख़्वाब जलते आज मैंने देखा है
ये सफ़र मुश्किलों का है बस हाथ मलते, मैंने देखा

ये सफ़र मुश्किलों का है बस हाथ मलते, मैंने देखा
मैंने देखा है आज घुघूती को घुघते हुये  
ना हँसते हुये उसे ना उसे रोते हुये

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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