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झोड़ा लोक नृत्य



झोड़ा लोक नृत्य प्रेम और श्रृंगार से भरा नृत्यगान

अल्मोड़ा-रानीखेत-सोमेश्वर-द्वाराहाट क्षेत्र में झोड़ा एक लोकप्रिय नृत्यगान शैली है. झोड़ा चांचरी का ही परवर्ती रूप लगता है. झोड़ा हिंदी के जोड़ या जोड़ा शब्द से मिलकर बना है.

नेपाली में झोड़ा के लिये हथजोड़ा शब्द का प्रयोग किया जाता है. इस तरह झोड़ा का अर्थ है हाथ जोड़कर या दो भागों में बंटकर किया जाने का नृत्य.

कुमाऊं में झोड़ा दो तरह का होता है एक मुक्तक झोड़ा और दूसरा प्रबंधात्मक झोड़ा. झोडों का मूल रूप प्रबंधात्मक ही है जिसमें लोक देवी-देवताओं और एतिहासिक वीर-पुरुषों के चरित-गान होते हैं. धार्मिक झोड़ों को नौर्ति, सप्ता, ननौल आदि भी कहा जाता है.
 
मुक्तक झोड़ों का आयोजन मेलों, उत्सवों और विभिन्न पर्वों के अवसर पर होता है. ये धार्मिक और श्रृंगारिक दोनों होते हैं लेकिन सर्वाधिक प्रेम और श्रृंगार का वर्णन होता है. महिलाएं और पुरुष दोनों ही इसमें समान रुप से भाग लेते हैं. कभी कभी महिलाओं और पुरुषों के अलग-अलग झोड़े भी होते हैं. मुक्तक झोड़ों में कहीं कहीं हुड़का बजता है कहीं ढोल दमाऊं.

इसमें एक वृत्त या दो अर्द्धवृतों में लोग समान पदक्रम एवं अंगसंचालन करते हुये नृत्य करते हैं. वृत्त या अर्द्धवृत्त के बीच में प्रमुख गायक हुड़किया किसी गीत की टेक आरंभ करता है. उसके पद क्रम मिलाते व्यक्ति वृत्ताकर नाचते हुए गीत की पंक्ति को दोहराते हैं.

झोड़े में कभी कमर झुकाकर, कभी पूरे शरीर को लहर देते हुए, कभी सिर को दाएं- बाएं झुलाते हुए, कभी दाएं और कभी बाएं झुकते हुए, पदक्रम में नाचते हैं.

बालकृष्ण डी ध्यानी
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