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भाग ७०घपरोल

भाग ७० 

सुबेर-सुबेर घपरोल

" आजो गढवालि चुटकला" "

श्रीमान जी,"अरे, बंद कैर अब । पुष्पा बौ चलि बि ग्या काफ़ी पैक । क्य खुणि छै तै म्यार पजामा कुर्ता थाँथु न कूटणि थम थम कैरिक. वैन फटि जाण अब. नै कु नै च। अबि सिलै छ्याइ मिन धरमू ब्यौ खुणि।"
श्रीमती जी,"फटिण द्य्याव। ब्यौ ह्वै ग्या ना। क्य फरक पुणू। अब मि वीं पातर तैं त नि थींचि सकदू त आपर गुस्सा यूं कपड़ो तैं थींचि क निकालदू।"
श्रीमान जी," पागल ह्वै ग्यै क्य। इतगु गुस्स बि ठिक नि हूंद।"
श्रीमती जी," हाँ!पगले ग्यूं मि। इतगु बकबास करणि छा वा यखम ऐकि। तुमन एक शब्द बि ब्वाल मेरि तरफ बिटीक। उल्टू "बौ चा, न तो, काफ़ी पै जा ब्वारिक हथ की।"
श्रीमान जी,"ठिक त कार मिन।झगड़ा घटाण चयेंद न कि बढाण चयेंद। कसूर त त्यार भै सुंदरु क ही च भै। जब मिन गवै देकि कोर्ट मैरिज करवै दे । त अब किले छन वीं स्याली तैं परेशान करणू। सभि बंद ह्वै जाऽल जेल मा दैज कू कैस मा"
श्रीमती जी," सब झूठ च। तुमन धौ बुलण। झूठ जीजा बणिक कोरट मा गवै द्य्याइ अर अब स्यालि बि यखि आणि त तुम खुश। हमारो सि क्वी नी।"
श्रीमान जी," कन नि त्यार क्वी। अब त ब्वारी भि लिये।क्यांक कमि च। बतौ।"
श्रीमती जी," कनि आईं च ब्वारी।अब वा भि तुमारि पातर बौक गाल्यूंक पाठशाला मा भर्ती हुणि । जैंक गढवालि गाऽलि पैलि चैप्टर च। तब मितै हि देलि ब्वारी बि गाऽलि।"
श्रीमान जी," भौत बढिया काम करणि ब्वारी अर पुष्पा बौ। अपणि मातृभाषा अर बोली बुलण आणि चयेंद। तबि त ब्वारी भि सिखणी गढवालि।"
श्रीमती जी," तुम नि सिखै सकद छ्याइ। वांक दें त शिक्षक सम्मान मिल्यूं श्री नरेंद्र सिंह नेगी भेजिक हथ गढवालि पढाणो। वीन त गालि सिखाणो हि ठिक्का लियूं।नखिराइट वीं पातर क।"
श्रीमान जी," ठिक त च। ब्वारी बौ से सुविधा से गढवालि सीख सकदी। अर् बौ तै मि से जादा ठेठ गढवालि शब्दों ज्ञान च. द्य्याख नि क्य बढिया शुद्ध गढवालि गाली देन बौ न। मिते भि नि आंद।"
श्रीमती जी," तुम भि चलि जैन वींक इस्कूल मा गढवालि सिखणो. म्यार क्य, मि त कबि भि मैत चलि जौल।"
श्रीमान जी," बत्तीस साल ह्वै गैन सुणद -सुणद। अबि चलि जा। पर मिन त कुछ नि ब्वाल।"
(घपरोल जारी)

विश्वेश्वर प्रसाद-(सिलस्वाल जी)

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