उत्तराखंड के सबसे लोकप्रिय स्थलों में से एक। चमोली को देवताओं के निवास के रूप में जाना जाता है, यहाँ धार्मिक मंदिरों और मंदिरों के कई स्थल हैं।
देवी-देवता भी करते हैं क्षेत्र भ्रमण
कर्णप्रयाग। पहाड़ में देवी-देवताओं की यात्रा सहित क्षेत्र भ्रमण का इतिहास प्राचीन है। इन यात्राओं को एक गांव से दूसरे गांव की खोज खबर लेने और अपनी ध्याणियों (विवाहिता बेटी/बहन) की कुशलक्षेम जानने का जरिया माना जाता रहा है। चमोली और रुद्रप्रयाग में कई गांवों की आराध्य मां चंडिका देवी भी 12 या उससे अधिक समय में क्षेत्र भ्रमण करती हैं। चंडिका स्थानीय सहित गढ़वाल के उन गांवों का भी भ्रमण करती हैं, जहां उसकी ध्याणियां रहती हैं। यह भ्रमण यात्रा पांच से छह माह या उससे अधिक समय तक की भी होती है।
चमोली के पोखरी ब्लाक के पोखरी, कर्णप्रयाग और गोपेश्वर से जुड़े सैकड़ों गांवों की कुल देवी चंडिका हैं। गांवों में देवी की विशेष पूजा होती है। सिवाई की चंडिका ने 19 वर्ष के बाद अक्तूबर 2011 से मई 2012 तक चमोली, रुद्रप्रयाग, पौड़ी, टिहरी, उत्तरकाशी, हरिद्वार और देहरादून जिले का भ्रमण कर अपनी ध्याणियों से भेंट की। कुछ माह पूर्व 38 वर्ष के बाद गोपेश्वर की चंडिका क्षेत्र भ्रमण पर निकलीं। रुद्रप्रयाग के रांसी-गौंडार की रांकेश्वरी देवी 1200 किमी से भी अधिक लंबी यात्रा पर इन दिनों निकली हुई हैं। वर्ष 2010 में सिमली की चंडिका भी गढ़वाल का भ्रमण कर चुकी हैं।
चमोली-रुद्रप्रयाग में देवी-देवताओं की यात्राएं
कर्णप्रयाग की उमा देवी, सिमली की चंडिका, सिवाई की चंडिका, रतूड़ा की चंडिका, गोपेश्वर की चंडिका, बणद्वारा की ज्वाल्पा, अनसूया की डोली, सगर की चंडिका, बछेर की चंडिका, नंदप्रयाग की चंडिका सहित गुडसाल की इंद्रामति, रांसी-गौंडार की रांकेश्वरी, अगस्त्यमुनि के अगस्त्य ऋषि सहित कई गांवों के भूम्याल देवता समय-समय पर भ्रमण करते हैं।
पूरे हो पाएंगे राजजात के छूटे कार्य, संशय बरकरार
कर्णप्रयाग। श्रीनंदा राजजात 2014 संपन्न हो गई है लेकिन राजजात तैयारियों के नाम पर जो कार्य जहां छूटे हुए थे, वे पूरे होंगे या वैसे ही रहेंगे, इसे लेकर लोगों में संशय बना है। 18 अगस्त को शुरू हुई राजजात सात सितंबर को कुंवरों की विदाई के साथ समाप्त हो गई। यात्रा में सभी पड़ावों पर भक्तों का सैलाब उमड़ने के साथ ही व्यवस्थाओं को लेकर राजजात समिति सहित शासन-प्रशासन के दावों की पोल भी खुली। नंदकेशरी, मुंदोली और वाण में जहां कई कार्य अधूरे रहे, वहीं निर्जन पड़ावों पर पानी की सुविधा तक नहीं थी। डिम्मर गांव के प्रकाश डिमरी, रमेश मैखुरी और टीका प्रसाद मैखुरी का कहना है कि राजजात तैयारियों के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च किए गए, लेकिन अव्यवस्थाएं पसरी रहीं। कई पड़ावों पर जो कार्य अधूरे हैं, उन्हें पूरा किया जाना चाहिए। इधर डिप्टी स्पीकर डा. अनसूया प्रसाद मैखुरी ने बताया कि जो भी कार्य छूटे हैं, उन्हें पूरा करने के लिए विभागों को दोबारा निर्देशित कर, समीक्षा की जाएगी।
राजजात के सफल संचालन
12 थोकी ब्रह्मणों, 14 सयानों,
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