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टपकेश्वर मंदिर ....Tapkeshwar Temple...जिला देहरादून.. उत्तराखंड


टपकेश्वर मंदिर ....Tapkeshwar Temple...
जिला देहरादून.. उत्तराखंड

यह मंदिर देहरादून जिला देहरादून सिटी बस स्टेंड से 5.5 कि॰मी॰ की दूरी पर गढ़ी कैंट क्षेत्र में एक छोटी नदी के किनारे बना है। सड़क मार्ग द्वारा यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है। यहाँ एक गुफा में स्थित शिवलिंग पर एक चट्टान से पानी की बूंदे टपकती रहती हैं। इसी कारण इसका नाम टपकेश्वर पड़ा है। शिवरात्रि के पर्व पर आयोजित मेले में लोग बड़ी संख्या में यहां एकत्र होते हैं और यहां स्थित शिव मूर्ति पर श्रद्धा-सुमन अर्पित करते हैं।

पता - गढ़ी केंट, डोईवाला जिला-देहरादून, उत्तराखंड-248001

सम्पर्क सूत्र
श्री भारा गिरि जी, पुजारी

दिशा
यह क्लॉक टॉवर से 7.5 किलोमीटर की दूरी पर गढ़ी केंट में स्थित है। नक्शा देखै

आरती/प्रार्थना/का समय
07:00 सुबह और 07:00 शाम

बंद रहता है
सभी दिन खुला रहता है।

देवता, जिनकी पूजा होती है
भगवान शिव

एतिहासिक श्री टपकेश्वर महादेव मंदिर का नाम सुनते ही मन में भगवान शिव के शरण में जाने की अनुभूति होती है। देहरादून के इस मंदिर के दर्शन करने के लिए राज्य ही नहीं देश-विदेश से श्रद्धालु आस्था के साथ पहुंचते हैं। खास बात यह है कि शिवरात्रि पर जल चढ़ाने के लिए कई किलोमीटर तक लाइन में लगाकर श्रद्धालु इंतजार करते हैं।

आज भी निरंतर शिवलिंग पर गिरती है जलधारा


यह एक प्राकृतिक गुफा मंदिर है। यह गुफा 'द्रोण गुफा' के नाम से भी प्रसिद्ध है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, अश्वत्थामा ने मंदिर की गुफा में छह माह एक पांव पर खड़े होकर भगवान शिव की तपस्या की थी। जिसके बाद भगवान प्रकट हुए तो उनसे दूध मांगा।

इस पर प्रभु ने शिवलिंग के ऊपर स्थित चट्टान में गऊ थन बना दिए और दूध की धारा बहने लगी।

इसी कारण से भगवान शिव का नाम दूधेश्वर पड़ गया। कलियुग में दूध की धारा जल में परिवर्ति हो गई, जो आज भी निरंतर शिवलिंग पर गिर रही है। इस कारण इस स्थान का नाम टपकेश्वर पड़ गया। यह टपकेश्वर धाम, टपकेश्वर मंदिर और टपकेश्वर महादेव मंदिर के रूप में विभिन्न नामों से लोकप्रिय है।


गुरु द्रोणाचार्य से प्रसन्न होकर शिव ने दिए थे दर्शन


देहरादून शहर से करीब छह किलोमीटर दूर ऐतिहासिक श्री टपकेश्वर महादेव मंदिर गढ़ी कैंट छावनी क्षेत्र में तमसा नदी के तट पर स्थित है। महाभारत काल से पूर्व गुरु द्रोणाचार्य के तप से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने दर्शन दिए।

गुरु द्रोण के अनुरोध पर ही भगवान शिव जगत कल्याण को लिंग के रूप में स्थापित हो गए। इसके बाद द्रोणाचार्य ने शिव की पूजा की और अश्वत्थामा का जन्म हुआ।


यहां पूरा सावन बना रहता है मेले का माहौल


मंदिर में देश ही नहीं, बल्कि विदेशों से भी शिव भक्त और पर्यटक भगवान के दर्शन को यहां आते हैं। पूरा सावन महीना यहां मेले का माहौल बना रहता है और दर्शन के लिए लंबी लाइन लगानी पड़ती है। मंदिर में सुबह और शाम दोनों समय आरती होती है। लोग अन्य दिनों में भी पूजा और दर्शन करने पहुंचते हैं।

मात्र जल चढ़ाने से भक्तों की मन्नत होती है पूरी

जंगमेश्वर व टपकेश्वर महादेव मंदिर के श्री 108 महंत कृष्णा गिरी महाराज के अनुसार, भगवान शिव यहां साक्षात प्रकट हुए थे। श्री टपकेश्वर महादेव भक्तों की मनोकामना को पूरी करते हैं।

सावन के महीने में यहां मात्र जल चढ़ाने से भक्तों की मन्नत पूरी होती है। 12 महीने देश-विदेश से श्रद्धालु यहां दर्शन करने आते रहते हैं।

महादेव की महिमा टपकेश्वर रूप में अपरंपार


टपकेश्वर महादेव मंदिर के दिगंबर भरत गिरी महाराज बताते हैं कि पूर्णिमा के दिन महादेव का दूधेश्वर के रूप में शृंगार किया जाता है। क्योंकि इसी दिन अश्वत्थामा को महादेव ने दर्शन दिए थे। यहां जो भी भक्त सच्चे मन से आता है, शिव उसकी मनोकामना पूरी करते हैं। महादेव की महिमा टपकेश्वर रूप में अपरंपार है।


इस तरह पहुंचे मंदिर


टपकेश्वर महादेव मंदिर आइएसबीटी से तकरीबन सात किलोमीटर, जबकि घंटाघर से पांच किलोमीटर की दूरी पर है। आइएसबीटी से जीएमएस रोड होते हुए गढ़ी कैंट तक विक्रम आते हैं।

यहां जाने के लिए आइएसबीटी से जीएमएस रोड, गढ़ी कैंट से टपकेश्वर पहुंच सकते हैं। इसके अलावा यदि आप रेलवे स्टेशन से जा रहे हैं तो स्टेशन से दर्शनलाल चौक, घंटाघर, कौलागढ़ रोड से गढ़ी कैंट होते हुए पहुंच सकते हैं। रेलवे स्टेशन से सहारनपुर चौक कांवली रोड होते हुए भी गढ़ी कैंट तक जा सकते हैं।

मंदिर से कुछ पहले वाहन के लिए पार्किंग की व्यवस्था है और यहां विभिन्न दुकानें भी सजी रहती हैं। जहां से प्रसाद, गंगाजल, दूध आदि खरीदारी कर सकते हैं।

यहां से नीचे सीढ़ि‍यों से उतरने के बाद यहीं तमसा नदी के तट पर स्थित है टपकेश्वर महादेव मंदिर। यहां पहुंचते ही मन शांत ओर प्रसन्न होता है।
बालकृष्ण डी ध्यानी
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